सागर की विशालता

तट के किनारे देख रही हूँ
दूर तक फैले विशालकाय
अथाह गहरे समुद्र को ..
शोर करती तीव्र वेग से उठती
रेत से लथपथ लहरें
हमारे जिस्म को भिगोती
जैसे हमारे गले लग हमें अपने
बाहुपाश में भरना चाहती है
तीव्रता से अपना अधिकार जता
शीघ्र ही हमें छू वापिस लौट जाती है
और फिर शुरू हो जाती है अठखेलियाँ
थिरकती मुस्कुराते हुए हमें आकर्षित करती लहरें
हे ! विशालकाय …..
तुम्हारे अन्त:स्थल में भरा है कोलाहल
जहाँ झांकती है पदचापें
तुमसे मिलने के इन्तज़ार में
ख़ामोशी भरी आवाज से
आत्मा तुम्हें दूर तक निहारती है
तुम सभी बंधनों से मुक्त हो
कभी आगोश में ले स्पर्श कर
ह्रदय के तार झंकृत करते हो
मैं तुम्हें जानने को उत्सुक हूँ
पर तुम्हारी चुप्पी , नभ की विशालता
सागर की गहराई क्या मापी जा सकती है
मै सोचती हूँ कभी-कभी
कि क्षितिज पार डूबता ,पर्वतों के पीछे से
झाँक- झाँक उगता और उड़ान भरता
पहुँच जाता है आकाश में ,
तुम्हारी तरंगें नृत्य करती
अपने क़दम बढ़ाती
अनदिखा समय मेरे सपनों को पंख लगा
दिशा देना चाहते है ,
रोज़ ही नदियाँ तुम्हारी प्यास बुझाने
तुम्हें तृप्त करने उतरती है तुममें
लबालब भरे हो फिर अनंत है तुम्हारी प्यास
हे प्रिये !…….
भर लूँ तुम्हें आगोश में
इस रहस्यमयी अथाह गहरे प्यासे
सागर को , तोड़ दूँ बंधन , संकोच
रात-दिन तुम मेरे भीतर शोर करते हो
जब गहरी नींद में फैलता है अंधेरा
तुम दूर से एकटक मुझे घूरते हो
पास बुलाते हो मैं स्तब्ध , ख़ामोश
अपलक तुम्हें टटोलती हूँ खोजती हूँ
कि सदैव रहो तुम मेरे साथ
करूँ नए सफ़र की
नई राह की तलाश
मेरी सोच की उड़ान देख
तुमने अपनी बाँहें पसारी है
मेरे स्वागत मे,
आओ! चले अनंत तक हम साथ
करो आग़ाज़ …..!!!


Author
 
किरण यादव 

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