Yadav -The untold story क्या यादव ऐसे भी होते है

Arun Sir

क्या यादव ऐसे भी होते है | आप भी सोच रहे होंगे की ये मै क्या बोल रहा हु | ये मेरे जीवन की एक सच्ची घटना है जो आज मै आप लोगो को शेयर करने जा रहा हु जिसे पढ़कर शायद आप भी बोल उठेंगे वाकई यादव ऐसे ही होते है |
तो चलिए मै आप लोगो को अपने साथ बीती उस घटना को शेयर करंता हु |
मेरा Arun Kumar Yadav है और मै Ajay Kumar Garg Engineering College में Professor हूँ, एक बार मुझे देहरादून अपने रिश्तेदार के पास जाना था और उस समय देश नोटबन्दी के दौर से गुजर रहा था और मेरे पास सिर्फ 6000 रूपये थे जिनमे 5000 पुराने नोट थे | मै थोडा सा परेशान हुवा की अब क्या करे क्योकि मुझे देहरादून मिठाई लेकर जानी थी फिर मै ये सोचकर घर से निकला की रास्ते में तो बहुत से ATM है किसी ना किसी में तो पैसे मिल ही जायेंगे लेकिन मैंने 4-5 ATM के चक्कर काटे मगर कही पैसे नही मिले हर ATM पर लोग पहले से ही लाइन लगा कर इस उम्मीद में खड़े थे की शाम तक ATM में पैसा आ जायेगा मगर मेरे पास इतना समय नही था की मै लोगो की तरह लाइन में लग सकू और इन्तजार कर सकू | फिर मैंने सोचा चलो अब जो भी हो देखा जाएगा पहले किसी मिठाई की दूकान पे चलते है | ये सोच के मै मदन स्वीट हाउस की दुकान पर गया और वहा पे मौजूद एक Employee को अपनी समस्या बताई और बोला मुझे 4 Kg मिठाई लेनी है और मेरे पास पुराने नोट है क्या आप मुझे मिठाई दे सकते है लेकिन अपनी समस्या बताने और काफी Request करने पर भी वह Employee पुराने नोटों की वजह से मिठाई देने के लिए राजी नही हुवा | मै बहुत निराश हुवा और भारी मन से हल्के हल्के कदम से वापस आने लगा तभी उस दुकान के मालिक श्री मदन जी आते हुवे दिखाई दिए , मै श्री मदन जी को नही जानता था और वो भी हमें नही जानते थे लेकिन एक इंसानियत के नाते उन्होंने शायद मेरा चेहरा पढ़ लिया और मुझे रास्ते में रोक कर वापस दुकान में लाये और उन्होंने मेरी पुरी बात ध्यान से सूना और 4 kg मिठाई बिना पैसे लिए दे दी और सबसे बड़ी बात ये थी की उन्होंने मेरे पास जो 5000 पुराने नोट थे उसे भी बदलकर 5000 नये नोट दे दिए | सच कहू तो उस समय मेरी आँखे नम हो गयी थी की क्या कोई इन्सान ऐसा भी होता है क्या जो बिना जाने पहचाने इतनी सहायता कर दे | मैंने मन ही मन सोचते हुवे अपनी यात्रा के लिए देहरादून की तरफ आगे बढ़ा और रास्ते में बस येही विचार चल रहे थे की ऐसे सज्जन व्यकित कभी-कभी मिलते है अगर मुझे कभी उनकी सहायता करने का मौका मिला तो मै अपने आप को भाग्यवान समझूंगा | इसी बात को सोचते सोचते कब मै देहरादून पहुच गया पता भी नही चला |

देहरादून से आने के बाद मेरे पास नये नोट आ चुके थे तो मैंने सोचा चलो अब मिठाई के पैसे देकर आते है और ये सोच कर मै मदन स्वीट हाउस पे गया उस समय श्री मदन जी वहा मौजूद थे और उन्होंने एक हल्की सी स्माइल के साथ पुछा की कैसी रही यात्रा और मैंने भी मुस्कराते हुवे उनका आभार प्रकट किया और बोला वाकई मजेदार रही | जब मैंने उनसे 4 kg मिठाई के दाम पूछे तो उन्होंने काफी कम दाम बताया ये सुनकर मै और भी आश्चर्यचकित रह गया | फिर बाद में पता चला की श्री मदन जी भी हमारी community के है यानी एक यादव है |
फिर अचानक ही मेरे मुह से निकल पड़ा क्या यादव ऐसे भी होते है जो बिना जाने पहचाने इतनी हेल्प कर दे |
खैर अब हमारे बीच एक दोस्ती का रिश्ता बन चूका है अब मै जब भी उनकी दूकान पर जाते हु तो उनका व्यवहार ऐसा होता है की जैसे मै उनका पुराना मित्र हु | मै श्री मदन जी को दिल से धन्यवाद बोलता हु जिन्होंने मेरी उस समय मदद की जब मुझे जरुरत थी |

तो आपको कैसे लगी ये सच्ची घटना पर आधारित लेख | कृपया Comment के माध्यम से जरुर बताये |
और क्या आपके साथ भी कुछ ऐसा हुवा हो किसी यादव दोस्त ने आपकी सहायता आपको बिना जान पहचान के की हो , तो
वो रोचक Story हमारे साथ जरुर शेयर करे | अपनी Story Email ID- jitendrakfa@gmail.com पर
भेज सकते है !! धन्यवाद

5 thoughts on “Yadav -The untold story

  1. Humanity is still alive and kicking.
    We are proud of the bench mark of humanity set by you Madan bhai.
    He is a member of KFA

    1. यादवों के गुणों का वर्णन करना अति कठिन काम है। कौन से गुण इनमें नहीं है । मदन जी बहुत नेक ईंसान है । दिल के साफ हैं। मेरी भी मुलाक़ात हुई है पर कुछ क्षणों के बाद तो ऐसा लगा ही नहीं कि हम कुछ पल पहले मिले हैं। लगता था हम पुराने मित्र हैं। इसी तरह मिलने- जुलने का सिलसिला चालू रखिये। जीवन में कुछ ऐसे भी मिलेगें जिनको आप सममान दोगे तो उसके मन में आपके प्रति बुरा ख़याल आयेगा । वह सोचता है कि इतना सममान क्यों दे रहा है । मेरी मुलाक़ात ऐसे भी लोगों से हुई है और वे के यफ ये के मेमबर हैं। पुरानी मुलाक़ात थी , पर अधिक सममान पाकर उनका पूरा चरित्र सामने आ गया । ख़ैर माफ किजियेगा , अभिव्यक्ति की आज़ादी है । समालोचना में दोनों पक्ष हों तो ठीक रहता है । बस एक प्रार्थना है कि “एक बनो, नोक बनो”।

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